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हमारा यह भोपाल

डरें, कृष्ण कान्त अग्रवाल

हमारा यह भोपाल शहर ताल-तलैयों की नगरी है जिसमें कूछ पुराने तालाब आदमी की बसावट के लिए पूर दिये गये, वहीं नदियों पर बाँध बाँध कर नई झोलों को बनाया गया । ऐसी कई झीलें कलियासौत बाँध, केरवां बाँध, कोलार बाँध व हलाली बाँध आदि के कारण आज भोपाल के पर्यावरण को सुन्दर व सुरक्षित बनाये हुए हैं । इसी प्रकार कई नए तालाब भी बने हैं और ताल-तलैटयों की संखया में वृद्धि हुई है 1 विन्नध्यश्वाचल पर्वत माला पर स्थित यह नगर भारत की सांरुकूतिक राजधानी के रूप में विख्यद्रत है । कालिदास का उत्तर मेघ, यक्ष के निवेदन पर बेतवा नदी तथा भोपाल के ऊपर से गुजरते हुए अवश्य हर्षित हुआ होगा । भोपाल में सदा से ही साहिंत्यकारों, नाट्यकारों, कवियरैं- शायरो एवं अन्य कई विधाओं के कलाकारों की प्रचुरता रही है । यहां तक कि कहा जाता है किं पुराने भोपाल का हर दूसरा आदमी शायर था और अपनी योग्यता अनुसार काफी कूछ लिखता था । मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी तो काफी अर्से तक भोपाल ही रहे थे । भोपालियों द्वारा नवाब और बेगमों की इंस भव्य नगरी के

पुराने महलों, हवेलियों व अन्य ऐतिहासिक भवनों के रख रखाव में जहाँ कूछ लापरवाही बरती गई वहीं राजधानी बनने के कारण धीरे-धीरे कांकीट का एक जंगल भी उभर आया है । लखनऊ के बाद, भोपाली तहजीब का एक अलग ही रंग रहा है जिसे शोहरत भी बहुत मिली है । यदि भोपाली गलियों को छोड़ दिया जाये तौ यहाँ की तहजीब का एक अपना मुकाम है

आधुनिकता की दौड़ में यू' भोपाल पाछे नहीं है लेकिन इस तेज़ कदम रपतार के कारण भोपाली भाईचारा, मिल -जुलकर रहने की तहजीब और सुख-दुख में एक साथ बने रहने के रस्मो -रिवाज़ बस कहने भर को रह गये हैं । बढती हुई आबादी, राजनैतिक आकांक्षाओं और आर्थिक दबावों ने यहां के लोगों को एक महानगर कल्चर दे दिया है जिसके दुष्परिणामों की पराकाष्ठा हाल ही के दंगों में देखने को मिली है । मैंने स्वयं अपने जीवन के इन 50 वर्षों में देखना तो दुर कभी कल्पना भी नहीं की थी कि भाई-भाई का दुश्मन हो सकता है और इत्मान वहशीपन की ऐसी हालत कौ पहुँच सकता है कि जानवर भी पाछे रह जायें । लेकिन जो बात इन सब दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों के बावजूद आज भी आश्वस्त करती है वह है वह सौहाद्र३ और चेतना जो इस दौरान भी मौजूद थी किंवदंतियों के आधार पर और ऐतिहासिक तटयों के अनुसार भी भोपाल की स्थापना राजा भोज द्वारा की गई थी और कभी यहाँ पर अगरुस्य मुनि का आश्रम भी था । फिर जैन धर्म आया और बौध धर्मियों द्वारा निर्मित अनगिनित स्तूप (सांची स्तूप तो उनमें से एक ही है) इस बात के प्रमाणहैं कि इस नगर को इतिहास बोध बहुत पुराना है । कोई आश्चर्य नहीं किं भोपाल कौ परंपरा, पारस्परिक सौहाद्र" और भाषा इतनी उत्वदुष्ट रही है कि हजरत बासित भोपाली ने फरमाया- 

ये आइनाए फिरदौस जिसे कहते हें

ए दोस्त हकीकत में वही है भोपाल

बहुत कूछ खो गया दे. बहुत कूछ बदल गया है . और बहुत कूछ ऐसा भी है जो मौजूद तो है लेकिन इम भागते हुष्ट शहर की उमकी ज़रूरत नहीं बरी । लेकिन भोपाल के आस-पास के सृरम्य स्थल आज भी उसी शान्ति, त्रुन्दचंता और अपनेपन से भोपालबायिग्रेग्रे का ही नहीं. नबग्गन्तुक्ररैं का भी इंतजार करते है । शायद यह कहने के लिए कि हादसे अपनी जगह, नंपतार अपनी चाल और बदलाव अपनगै तरह लेकिन. इन सब के बावजूद अभी भी बहुत से मुकाम इस शहर के आसपास मौजूद हैं जहाँ पहुँच कर आप इस सारी भाग-दौड़ और आपा-थापी के बाबजूद कुदरत की इस बेजोड़ और अनूठी देन-भोपाल, की गोद में कुछ पल सुस्ता सकते हैं।